तोत्तो चान | Tottochan

तोत्तो चान : तेत्सुको कुरोयांगी, पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा | Tottochan : Tetsuko Kuroyangi, Purva Yagyik Kushwaha

तोत्तो चान : तेत्सुको कुरोयांगी, पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा | Tottochan : Tetsuko Kuroyangi, Purva Yagyik Kushwaha के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : तोत्तो चान है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Arvind Gupta | Arvind Gupta की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 4 MB है | पुस्तक में कुल 81 पृष्ठ हैं |नीचे तोत्तो चान का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | तोत्तो चान पुस्तक की श्रेणियां हैं : children, education, inspirational, Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Tottochan | This Book is written by Arvind Gupta | To Read and Download More Books written by Arvind Gupta in Hindi, Please Click : | The size of this book is 4 MB | This Book has 81 Pages | The Download link of the book "Tottochan" is given above, you can downlaod Tottochan from the above link for free | Tottochan is posted under following categories children, education, inspirational, Stories, Novels & Plays |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : , , ,
पुस्तक का साइज : 4 MB
कुल पृष्ठ : 81

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न मुख सागर देखने का अवसर मिला। मैं इवासाकी के पति के प्रति भी आभार जताना चाहती हूं जिन्होंने इन चित्रों के उपयोग की अनुमति मुझे दी। में नाटककार तादासु इज़ाया की भी आभारी हूं जो म्यूजियम के संरक्षक हैं। अब में भी इस म्यूजियम की एक न्यासी हूं। जब-जब में अपने लेखन में अटकी या हिचकि, उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया। । जाहिर है कि मियो-चान और तोमोए के सभी दूसरे साथियों ने मेरी बहुत मदद की। पुस्तक के जापानी संस्करण के संपादक केइको इवामोतो के प्रति भी में आभारी हूं, क्योंकि यह मुझे हमेशा कहते रहे, "हमें इसे सच में एक बढ़िया पुस्तक बनाना है।"
पुस्तक के जापानी शीर्षक का विचार मुझे चंद वर्ष पहले प्रचलित एक मुहावरे से आया। उस समय जब लोगों को यह कहना होता कि कोई व्यक्ति हाशिए पर जी रहा है या फिर भूलधारा से कट चुका है तो वे कहते कि वह खिड़की के फस खड़ा है। यह सच है कि बचपन में में डिट्टी में महज इस उम्मीद से जुड़ी होती थी कि शायद कहीं साजिदे नजर आ जाए, फिर भी अपने पहले स्कूल में में एक अजीब सी स्विति में ही जी रही थी-सबसे अलग-थलग, मूलधारा से कटी हुई। पर शीर्षक के इन अर्थों के साथ एक अर्थ और भी है-आनंद और उल्लास की यह खिड़की जो मेरे लिए तोमोए में खुली।
आज तोमोए नहीं है। लेकिन पुस्तक पढ़ते हुए यदि वह कुछ क्षण के लिए भी आपकी कल्पना में साकार हो उठा तो उससे बड़ी खुशी मेरे लिए कुछ और नहीं होगी।
अचंभा हुआ कि इन पत्रों में कई पत्र प्राथमिक शालाओं में पढ़ने वाले वा । भी थे। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने नन्हे-मुन्ने बच्चे भी इस पुस्तक को पगे, यद्यपि मैन कटिन चीनी लिपि के साथ उसका सरल पाट देने की सावधानी जरूर बरती यो। आज के युग में जब लिखित शब्द को लगातार त्यागा जा रहा है, मुझे यह बात चकित कर गयी कि दूसरी कक्षा तक के बच्चे शब्दकोश के सहारे तोतो-धान पढ़ रहे थे। दूसरी कक्षा की एक नन्हीं लड़की ने मुझे लिखा कि जब भी वह किसी विकलांग बच्चे को देखती है, उसे लगता है "अहो, यह तो यासुको-चान है'' या फिर “अरे, यह बच्चा जरूर तोमोए का होगा। आर तय वह भागती हुई उन्हें 'हलो' करने जाती है। और जब वे उसके अभिवादन का जबाव देते हैं तो उसे येहद खुशी होती है। यह भी तब, जब तोमोए का अंत हे दालीस साल बीत चुके हैं ! बच्चे सच में अद्भुत होते हैं, हो नी !
कई व ने अपने पत्रों में लिखा कि तोमोए वे जलने की घटना से इन्हें अहसास हुआ कि युद्ध येहद खराब होते हैं। दरअसल बच्चों की यह प्रतिक्रिया भर पुस्तक लिखने के संपूर्ण प्रयास को सफल कर देती है। पर सच यह है कि जिस समय में इस पुस्तक पर काम कर रही थी मेरे मन में इतना ही विचार या कि काश स्कूली शिक्षक और युवा माताएं श्री कोबायाशी के बारे में पड़कर यह कह सकें कि ''हां, यह एक ऐसा व्यक्ति था जो पूरी तरह समर्पित था, बच्चों को अथाह प्यार करता या, उनमें गहरी आस्था रखता था तो क्या ही अच्छा हो। पर साथ ही मन में कहीं यह भय भी था कि कहीं शिक्षक उनके विचारों को इस स्पधशील समाज के लिए अति-आदर्शवादी मानकर नकार न दें।
पर हुआ यह कि पुस्तक के छुपने के बाद प्राथमिक शालाओं के अनेक शिक्षकों ने लिखा कि वे हर दिन दोपहर के अवकाश में अपने छात्र-छात्राओं को पुस्तक के कुछ अंश पढ़कर सुनाते हैं। कला-शिक्षकों ने शिखा कि वे पढ़कर सुनाने के बाद, सुने हुए भाग पर बच्चों को कोई चित्र बनाने को कहते हैं। माध्यमिक स्तर के कुछ शिक्षकों ने लिखा कि शिक्षा की वर्तमान स्थिति से वे इतने विचलित और चिंतित थे कि शिक्षण कार्य को तिलांजलि देने पर आमादा थे। पर तभी श्री कोबायाशी के विचारों से प्रेरित हो, उन्होंने फिर से एक नयी कोशिश करने का मानस बनाया। ऐसे तमाम पत्रों को पढ़ मेरी आंखें सजल हो उठतीं, मुझे लगता कि कितने सारे लोग भी कोबायाशी की तरह सोचते हैं।
जापान के शिक्षक मेरी पुस्तक का कई तरह से उपयोग कर रहे थे। पिछले साल इसके एक अध्याय 'खेती-बाड़ी के शिक्षक' को जापानी भापा की तीसरी कक्षा की पाठ्य पुस्तक में शामिल कर लिया गया। 'घटिया स्कूल' नामक अध्याय को चौथी कक्षा की नीति-शास्त्र व शिष्टाचार को पाठ्य-पुस्तक में शामिल किया गया। कई ऐसे पत्र भी आए जो मुझे उद्विग्न कर गए। बाल-अपराध बंदीगृह की
तोक्यो, 1982
तातो-चान को उसे सिर्फ तीन वर्ष हुए हैं, पर इस बीच इतना कुछ पट गया है। कि में विस्मित भी है, और प्रसन्न भी। जब मैं अपने प्रिय हेडमास्टर जी और तोमोए के बारे में लिख रही थी तो मुझे यह सूझा तक नहीं था कि मेरी किताब एक बैस्ट-सेलर बनेगी। छपने के पहले ही साल में इसकी पैंतालीस लाख प्रतिया कि गयीं और अब तक की बिकी लगभग साठ लाख प्रतियों तक पहुंच गया है। मुझे बताया गया कि यह पाना प्रकाशन इतिहास का एक रिकार्ड है। पर इस सबका मेरे लिए कोई खास अर्थ नहीं था। पर जब जापान के कोने-कोने से हर रोज डेरों पर आने लगे तो मुझे अहसास हुआ कि लोग सच में मेरी किताब पढ़ रहे हैं। | हर उम्र के लोगों ने मुझे पत्र लिखे। इन लिखने वालों की आयु 5 से 103 वर्ष की थी। हर एक पत्र मन को विभोर करने वाला था। मुझे इस बात से भी

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2 Comments
  1. नवीन मिश्रा says

    तोत्तो चान हिन्दी
    ये पुस्तक के रूप में खरीदना चाहता हूं कंहा से मिलेगी?

  2. नवीन मिश्रा says

    तोत्तो चान हिन्दी
    ये पुस्तक के रूप में खरीदना चाहता हूं कंहा से मिलेगी??

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