यम पितृ परिचय हिंदी पुस्तक | Yama Pitru Parichay Hindi Book

यम पितृ परिचय हिंदी पुस्तक | Yama Pitru Parichay Hindi Book

यम पितृ परिचय हिंदी पुस्तक | Yama Pitru Parichay Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 17.52 MB है | पुस्तक में कुल 455 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

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पुस्तक का साइज : 17.52 MB
कुल पृष्ठ : 455

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प्र भ्री० पं० देवशर्माजी आचाय गुयकुल कांगड़ी-- आपका वह पत्र मिला जिसके अनुसार आपने मुझे श्री पं० प्रियरत्नजी महदोदयका वह निबन्थ देख लेनेकी आज्ञादी थी जो कि उन्होंने यम-पितर सम्बन्ध में लिखा है । बह निबन्ध किस दृष्टिसे देखना है यह मैं ठीक २ निश्चय नहीं कर सका | मैंने चार-पांच दिन तक प्रति दिन एक एक घणटा देकर श्रीमान्य पं० प्रिंयरत्न जी से उस निबन्धका भाग सना है मैंने श्री पं० प्रियरल्न जी से निवेदन किया था कि वे जो भाग मुझे सुनाना ावश्यक समभों उतना २ ही सुनादें मेरा यह निवेदन उन्होंने स्वी कार किया उसीके अनुसार मेंने कुछ-कुछ मुख्यमुख्य भाग सुन लिये हैं । मुमे इस पर केवल दो बातें कहदनी हैं । १ मेरी सम्मतिमें यह निनन्ध पुस्तक खण्डनके तौर पर नहीं लिखा जाना चाहिए मेंने सुना है कि सावदेशिक सभाकी ही यह आज्ञा हुई है कि श्री पं० सातवलेकरजी का प्रत्युत्तर दिया जावे त एवं मान्य पश्डित जी श्री प्रियरत्नजी ने उनके खण्डनाट्मक ढट्ठढ ते निनस्थ लिखा है । मु तो जहां सक ज्ञान है श्रो पं सातवलेकरजी ने इस विषयके मन्त्र संग्रह करके ओर उनका साधारण सा अ्थ दिखला कर रख दिया है कि सब विद्वान्‌ लोग इस विषय पर विचार करें और इस विषयमें कुछ वैदिक सिद्धान्त निणंय पर पहुँचे तो ये सब एं० सातवलेकरजी से मत- भेद दिखाते हुए भी इस ढड्डसे लिखी जा सकती थी जो कि विचार का ढज्न है न कि शाख्राथका खणडन का ढन् । न ि यह चीज मुझे साफ २ खटकती है । कइ जगह खण्डन मेरी समभ में ठीक भी नहीं है जैसे कि ऋक्‌ १०-१५ सूक्त के ख्याख्या के बाद श्री० पं० प्रियरस्न जी ने सूदम शरीरधारी जीवात्माओ्ओों के आने ओर मनुष्यों के कार्यो में सहयोग देने का खरण्डन किया है बह ठीक नहीं है । ९ दूसरी बात इतनी गम्भीर नद्दीं है । यह है कि अथ में खींचातानी को पं० सातवलेकर जी की अपेक्ता श्री पं० प्रियरत्न जी के थे पाठकों को कुछ खेंचातानी के लगेंगे । बहुत जगह तो यह खें चातानी केवल दीखनेवाली ही है वास्तविक नहीं । कोई भी पुरुष जब सन्त श्रौर सुसम्बद्ध झथे करने लगेगा उसके अर्थों में खींचातानी दीखेगी । दूसरा कारण वेदकी भाषा लौकिक भाषा से भिन्न होना ही है पर एक-अआध जगह मुभे ऐसा भी लगा है जहां अर्थो में वास्तविक खींचातानी है यथा अरग्निदर्कः अनग्निदुग्धा वाला मन्त्र । पर में इस दूसरी बातपर जोर नहीं देना चाहता । यह तो जो पं० प्रियरत्नजी ने इतने परिश्रमसे इतनी खो जसे काय किया दे और इतने मन्त्रों का सुसज्ञत प्रमाणुयुक्त अर्थ देनेका बड़ा प्रशंसनीय कायें

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