योग की विधि और सिद्धि हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Yog Ki Vidhi Aur Siddhi Hindi Book Free PDF Download

योग की विधि और सिद्धि हिंदी पुस्तक | Yog Ki Vidhi Aur Siddhi Hindi Book

योग की विधि और सिद्धि हिंदी पुस्तक | Yog Ki Vidhi Aur Siddhi Hindi Book

योग की विधि और सिद्धि हिंदी पुस्तक | Yog Ki Vidhi Aur Siddhi Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 37.91 MB है | पुस्तक में कुल 255 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm

Name of the Book is : | This Book is written by | To Read and Download More Books written by in Hindi, Please Click : | The size of this book is 37.91 MB | This Book has 255 Pages | The Download link of the book "" is given above, you can downlaod from the above link for free | is posted under following categories dharm |

पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 37.91 MB
कुल पृष्ठ : 255

यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

स्थायी एवं सम्पूर्ण सुख-शान्ति की प्राप्ति का एक मात्र उपाय - राजयोग रेक मनुष्य अपने जीवन में स्थायी सुख और शान्ति चाहता है। मनुष्य के सारे पुरुषार्थ सारे यल् इसी लक्ष्य की सिद्धि के लिये ही मालूम होते हैं। परन्तु इस ध्येय की प्राप्ति का साधन क्या है? क्या मनुष्य संसार के विषयों एवं पदार्थों को प्राप्त कर लेने से सम्पूर्ण सुख एवं शान्ति की प्राप्ति कर सकता है? ऐसा तो है नहीं क्योंकि हम देखते हैं कि सुख पदार्थों में नहीं है वह तो मन की एकाग्रता द्वारा स्वरूप स्थिति में है। क्या हम नहीं देखते कि यदि किसी मनुष्य के सामने समस्त रसों से युक्त पदार्थ रखे हों परन्तु यदि उसका मन किसी कारण से अशान्त हो जाय तो उस समय वे पदार्थ भी उसे नहीं भाते। पुनश्च पदार्थों को भोगते-भोगते तो मनुष्य स्वयं भी भोगा जाता है और अन्त में भोगने के साधन रूप इद्दियाँ भी शिथिल हो जाती हैं तन निर्बल हो जाता है ऐन्द्रिय शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं और मनुष्य शारीरिक जर्जरा भी मोल ले लेता है। फिर एक मनुष्य को एक पदार्थ प्रिय है तो दूसरे को वह सुहाता ही नहीं इस से भी विदित होता है कि सुख विषयों में नहीं समाया है वह तो मनुष्य के अपने ही मन पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त हम यह देखते हैं कि संसार के पदार्थ तो परिवर्तनशील हैं उनमें अवस्थान्तर होता रहता है। तो जो स्वयं ही क्षण-भंगुर हो हर क्षण में बदलता रहता हो उससे हमें भी तो स्थायी सुख की प्राप्ति नहीं हो पायेगी। अन्यश्च विषयों को प्राप्त करने तथा उनका संग्रह करने में उन्हें सेवन-योग्य बनाने और फिर उन्हें भोगने में ही मनुष्य का जीवन खप जाता है और इस पर भी यदि पूर्व कर्मों के परिणामस्वरूप वह विषय मनुष्य से छिन जाये तो मनुष्य के लिये वह विषय एक और दुःसह दुःख का कारण बन जाता है। उपरोक्त विश्लेषण से हमारा यह अभिप्राय नहीं है कि हम पदार्थों का संग्रह एवं भोग छोड़ दें। जब तक आत्मा शरीर में है तब तक शरीर के लिए भोजन वख्र स्थान इत्यादि तो मनुष्य को चाहिये ही होते हैं। यद्रि ये प्राप्त न हों तो भी मनुष्य को हिलाने वाला एक प्रबल कारण मन के सामने उपस्थित हो जाता है। फिर अकर्मण्यता भी तो

Share this page:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *