वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास – भाग 3 : पी. एन. ओ़क | Vaidik Vishwa Rashtra Ka Itihas – Part 3 : P.N.Oak | के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास - भाग 3 है | इस पुस्तक के लेखक हैं : P.N.Oak | P.N.Oak की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : P.N.Oak | इस पुस्तक का कुल साइज 22 MB है | पुस्तक में कुल 186 पृष्ठ हैं |नीचे वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास - भाग 3 का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास - भाग 3 पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, india, Uncategorized
Name of the Book is : Vaidik Vishwa Rashtra Ka Itihas - Part 3 | This Book is written by P.N.Oak | To Read and Download More Books written by P.N.Oak in Hindi, Please Click : P.N.Oak | The size of this book is 22 MB | This Book has 186 Pages | The Download link of the book "Vaidik Vishwa Rashtra Ka Itihas - Part 3" is given above, you can downlaod Vaidik Vishwa Rashtra Ka Itihas - Part 3 from the above link for free | Vaidik Vishwa Rashtra Ka Itihas - Part 3 is posted under following categories history, india, Uncategorized |
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"इबेरिया (उर्फ ईबरीय) के अधिकांश भाग में अच्छी खासी एक बस्ती है। उस (बिरीय) प्रदेश के कुछ भाग (जैसे अमें नियों यानि अर्मनीय का एपिस तथा अल्बानिया उर्फ अल्बनीय) काकेशीय पर्वत शृङ्खला से घिरे हुए हैं (इसी काकेशस प्रदेश के अधिपति की पुत्री दशरथ पत्नी कैकेयी थी)। इस प्रदेश के निवासियों के भी चार वर्ण यानि वर्ग हैं। प्रथम श्रेणी के वे हैं। जिनमें से राजा लोग नियुक्त होते हैं। दूसरा वर्ग पुरोहितों का है। तीसरा बर्ग है किसान और सैनिकों का। चौथे में अन्य जन सम्मिलित हैं। उनके पूज्य देवता हैं सूर्य, बृहस्पति तथा चन्द्र । इबेरिया के समीप एक चन्द्र मन्दिर है। राजा के पश्चात् पुरोहितों का सम्मान होता था। अल्बनीय जन वयोवृद्धों का बड़ा आदर करते हैं। माता-पिता और अन्य सारे ही गुरुजनों को अल्बनीय लोग पूज्य मानते हैं।
ऊपर उद्धत किए स्ट बोकृत वर्णन से यह अनुमान निकलता है कि शिबिरीय, इबिरीय आदि नाम सारे यूरोप का निर्देश करते थे। किन्तु आजकल यूरोप के नैक्हल्प के स्पेन-पुर्तगाल-झांस वाले कोने को ही इबेरीय पेनिनसुला (Iberian Peninsula) कहते हैं । इबेरिया नाम ही बिगड़कर यूरोप उर्फ ईरुप' यानि Europe बना, ऐसा प्रतीत होता है। विद्वान् मनीषि व वाचक इस पर विचार या संशोधन करें।
स्टेंबो के कथन में दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्राचीन यूरोपीय समाज में चार वर्ण थे । अन्तर इतना ही है कि स्टवो कहता है कि उसके
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यानी के पूरा मज़ा लेना है चुटकुले की किताब का