बंदी | Bandi

बंदी : कुंवर कल्याण सिंह | Bandi : Kunwar kalyan Singh

बंदी : कुंवर कल्याण सिंह | Bandi : Kunwar kalyan Singh के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : बंदी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Kunwar kalyan Singh | Kunwar kalyan Singh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 8.3 MB है | पुस्तक में कुल 92 पृष्ठ हैं |नीचे बंदी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | बंदी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Bandi | This Book is written by Kunwar kalyan Singh | To Read and Download More Books written by Kunwar kalyan Singh in Hindi, Please Click : | The size of this book is 8.3 MB | This Book has 92 Pages | The Download link of the book "Bandi" is given above, you can downlaod Bandi from the above link for free | Bandi is posted under following categories Stories, Novels & Plays |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 8.3 MB
कुल पृष्ठ : 92

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

लखनऊ नगरी में रंगमंच के प्रेमी भली भांति परिचित हैं, इन्हीं के द्वारा लिखित बन्दी नाटक में लेखक का रूप शायद उन्हें नया लगे, लेकिन वास्तव में 'नाटक' का क्षेत्र उनके लिये नया नहीं है। पंजाब से १९४८ में लखनऊ आने के पश्चात् वे बराबर रेडियो पर लिखते चले आरहे हैं, रंगमंच के लिये भी इन्होंने बहुत से नाटक लिखे हैं जिनको प्रकाश में लाने की ओर कुंवर जी ने चेष्टा नहीं की। इन अप्रकाशित नाटकों में 'मेहमान' जो पर्वतीय जीवन पर आधारित है रानीगंज कला मन्दिर द्वारा खेला गया और लखनऊ की नगरी में उसने सफलता का नया रिकार्ड स्थापित किया ।
कुंवर जी का रंगमंच का दीर्घ अनुभव होने के कारण इनके द्वारा लिखे नाटक रंगमंच की दृष्टि से अधिक उपयुक्त होते हैं। इनके नाटकों की कथा का घटनाक्रम इतना प्रभावी होता है कि दर्शक ऊबते नहीं।
कुंवर कल्याण सिंह जी का जन्म २२ जनवरी १९१७ को रियासत करौली में धनी परिवार में हुआ। बचपन की शिक्षा आपने लाहौर में पाई । कुंवर जी ने बचपन ही से रंगमंच की और अपनी रुचि दिखाई। आर्थिक दृष्टि से कोई बन्धन न होने के कारण स्टेज की ओर उन्होंने पूरा समय लगाया। लाहौर में लगभग सत्रह वर्ष की अवस्था से ही इन्होंने नाटकों का निर्देशन देना प्रारम्भ कर दिया था और थोड़े ही समय में वे रंगमंच में कुशल निर्देशक तथा अभिनेता के रूप में प्रसिद्ध हो गये । लाहौर का तो शायद ही कोई कालेज या स्कूल रहा हो जहाँ इन्होंने नाटकों का निर्देशन न किया हो। सन् ३९-४० में लाहौर के देवसमाज गल्र्स कालेज में कुंवर जी द्वारा निर्देशित नाटक को देखकर फिल्म दिग्दर्शक-निर्देशक रूप० के० शोरी बहुत प्रभावित हुए और सहायक निर्देशक के रूप में अपने यहाँ बुलवा लिया। सन् ४७ तक शोरी के साथ रहे लेकिन दुर्भाग्य से इसी विभाजन के कारण लाहौर छोड़ना पड़ा। १९४७ में लाहौर से अपना सब कुछ खोकर लखनऊ आये लेकिन जो अनभव कंवर जी हिन्दी रंगमंच के लिये लाये नर दिदी रंगमंच

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.