ब्रह्मचर्य जीवन की अनिवार्य आवश्यकता हिंदी पुस्तक | Brahmcharya Jeevan Ki Anivarya Avashyakta Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : ब्रह्मचर्य जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 1.28 MB है | पुस्तक में कुल 24 पृष्ठ हैं |नीचे ब्रह्मचर्य जीवन की अनिवार्य आवश्यकता का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | ब्रह्मचर्य जीवन की अनिवार्य आवश्यकता पुस्तक की श्रेणियां हैं : hindu, inspirational, Knowledge
Name of the Book is : Brahmcharya Jeevan Ki Anivarya Avashyakta | This Book is written by | To Read and Download More Books written by in Hindi, Please Click : | The size of this book is 1.28 MB | This Book has 24 Pages | The Download link of the book "Brahmcharya Jeevan Ki Anivarya Avashyakta" is given above, you can downlaod Brahmcharya Jeevan Ki Anivarya Avashyakta from the above link for free | Brahmcharya Jeevan Ki Anivarya Avashyakta is posted under following categories hindu, inspirational, Knowledge |
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जीवन का हाल है। यह खाद अगर अंत तक मिलता रहे तो अचछा ही है। लेकिन बराबर नहीं मिले तो कम-से-कम बचपन में तो बहुत आवशयक है। जैसे हम बचचों को दूध देते हैं उनहें अंत तक मिलता रहे तो अचछा ही है लेकिन बराबर न मिलें तो कम-से-कम बचपन में तो मिलना ही चाहिए। शरीर की तरह आतमा और बुदधि को भी जीवन के आरंभ में अचछी खुराक मिलनी चाहिए इसीलिए बरहमचरय आशरम की योजना बनाई गई है। विषय-वासना मत रखो --यह बरहमचरय का निगेटिव या अभावातमक रूप हुआ। सब इंदरियों की शकति आतमा की सेवा में खरच करो-यह उसका पोजीटिव या भावनातमक रूप है । बरहम यानी कोई बृहद कलपना। अगर में चाहता हूँ कि इस छोटी-सी देह के सहारे दुनिया की सेवा करूँ उसके ही काम में अपनी सब शबित खरच करूँ तो यह एक विशाल कलपना हुई। विशाल कलपना रहते हुए बरहमचरय का पालन हो जाता है । मैंने अधययन के लिए बरहमचरय रखा । उसके बाद देश की सेवा करता रहा। वहाँ भी इंदरिय संयप की आवशयकता थी। लेकिन बचपन में इंदरियनिगरह का अभयास हो चुका था इसलिए बाद में वह कठिन मालूम नहीं हुआ। मैं नहीं कहता कि बरहमचरय आसान चीज है। हाँ विशाल कलपना मन में रखोगे तो आसान हो जाएगा। ऊँचा आदरश सामने रखना और उसके लिए संयमी जीवन का आचरण करना इसको मैं बरहमचरय कहता हूँ। रहमचरय की विशववयापी महिमा यधपि सृषटि करम को सथिर रखने के लिए हमारे पूरवजों ने गृहसथ आशरम और दांपतय जीवन की आवशयकता भी सवीकार की है पर उसमें भी संयम का पालन अनिवारय माना है । धरम-करततवय के रूप में संतानोतपतति और बात है और कामुकता के फेर में पड़कर अंधाधुंध वीरय नाश करना बिलकुल भिनन है । इस परकार बरहमचरय जीवन की अनिवारय आवशयकता ८ ६
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