एक के ज्ञान से सर्व का ज्ञान | Ek Ke Gyan Se Sarv Ka Gyan

एक के ज्ञान से सर्व का ज्ञान | Ek Ke Gyan Se Sarv Ka Gyan

एक के ज्ञान से सर्व का ज्ञान | Ek Ke Gyan Se Sarv Ka Gyan के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : एक के ज्ञान से सर्व का ज्ञान है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Swami Madhav Tirthji | Swami Madhav Tirthji की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 454.9 MB है | पुस्तक में कुल 48 पृष्ठ हैं |नीचे एक के ज्ञान से सर्व का ज्ञान का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | एक के ज्ञान से सर्व का ज्ञान पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm

Name of the Book is : Ek Ke Gyan Se Sarv Ka Gyan | This Book is written by Swami Madhav Tirthji | To Read and Download More Books written by Swami Madhav Tirthji in Hindi, Please Click : | The size of this book is 454.9 MB | This Book has 48 Pages | The Download link of the book " Ek Ke Gyan Se Sarv Ka Gyan " is given above, you can downlaod Ek Ke Gyan Se Sarv Ka Gyan from the above link for free | Ek Ke Gyan Se Sarv Ka Gyan is posted under following categories dharm |


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पुस्तक का साइज : 454.9 MB
कुल पृष्ठ : 48

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वेदान्त की मुख्य प्रतिज्ञा यह है कि एक के ज्ञान से सर्व का ज्ञान होता है।ऐसी प्रतिज्ञा कैसे सिद्ध हो उसके उपाय इस पुस्तक में दिए हुए हैं।
इस पुस्तक में आखरी निर्णय दिया हुआ होने से शुद्ध अंतःकरण वाले की रूचि के अनुसार ज्ञान इसमें से मिलेगा। जिन्होंने दानपुण्य करके दोष निवृत्ति की हो उनको ऐसी बाबत में बराबर रूचि उत्पन्न होती है। अभ्यास और वैराग्य से जिनका मन शांत हुआ हो वे वेदांत का रसपान कर सकते हैं।जिनको ऐसे ज्ञान में रूचि उत्पन्न नहीं हो उन्हें यज्ञ,निष्काम कर्म,दान,तप आदि करना चाहिए और रूचि उत्पन्न होने के बाद उनको गौण समझकर ऐसे ज्ञान में लगना चाहिए।जबतक गुण-दोष रह जाते हैं तभीतक अद्वैतात्मक बुद्धि उत्पन्न नहीं होती,क्योंकि गुण-दोष रहते हैं तभीतक जगत में सत्यत्व की भ्रांति रहती है।जो लोग प्रत्यक्ष प्रमाण को सच्चा मानते हैं वे जगत की सत्ता देखकर अद्वैतज्ञान की ओर नहीं आते।प्रत्यक्ष प्रमाण सच्चा है कि नहीं उसकी वे जाँच नहीं करते।अतः कई बार उनको वेदांत में अरुचि उत्पन्न होती है।

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