मेरी क्युरी : गीता बंदोपाध्याय हिंदी पुस्तक | Marie Curie : Geeta Bandopadhyay Hindi Book

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इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 0.64 MB है | पुस्तक में कुल 24 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, children, inspirational, Knowledge, science, scientist

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मां की बीमारी बढ़ती गई बढ़ती गई बहुत बढ़ गई। सुन्दर बड़ी-बड़ी आंखें थीं उनकी कान तक खिंची हुई। और अब इन्हीं आंखों में नाच रही थी मृत्यु की छाया। मां तो बीमार थीं ही बापू की नौकरी भी चली गई। प्रिंसिपल इवानोव ने स्क्लोडोव्स्की की नौकरी छीन ली। लेकिन मान्या के बापू को इससे दबाया तो जा नहीं सकता था। उन्होंने फिर एक छोटे-से स्कूल में नौकरी कर ली। मकान भी बदल लिया। दूसरे घर में रहने लगे। खाने-पीने और पढ़ाई के खर्च पर कुछ विद्यार्थियों को घर पर ही रख लिया। घर की शांति जैसे नष्ट हो गई। पढ़ने-लिखने के कमरे में अब पहले जैसा शांत वातावरण कहां? लड़के खूब शोर मचाते। सारे घर को गंदा किए रहते। तो भी आबोहवा बदलने के लिए मान्या की मां को समुद्र किनारे जाना ही था। और समुद्र किनारे उन्हें भेजने के लिए बापू को खर्चे का प्रबंध करना ही था। कहावत है विपत्ति जब आती है तो अकेली नहीं आती। बापू के थे एक कुटुम्बी। इन कुटुम्बी महोदय ने रोज़गार लगाने के नाम पर अपनी सारी कमाई स्वाहा कर दी। लड़कियों के विवाह में दहेज़ के लिए रुपए की बात तो दूर लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने के लिए भी पैसा पास न बचा। श और इसके कुछ ही दिनों बाद मान्या की बड़ी बहन जोशिया टाइफस की बीमारी में चल बसी । मान्या समझ भी न पाई कि बड़ी दीदी कहां चली गई है। एक धुंधला-सा खतरा एक भारी-सा बोझ उसके मन पर छा गया। मान्या अपनी मां के मुंह को निहारती। लेकिन मां के मुंह को देखकर अपने को और भी असहाय पाती । दस वर्ष की मान्या जीवन की कटु-कठोर विपदाओं से छुटकारा पाने के लिए जी-जान से पढ़ाई में जुट गई। पढ़ती वह गद्य पद्य और परियों की कहानियां । स्कूल से पढ़कर लौटती तो फिर घर में किताबों की दुनिया में डूब जाती। आह किताबों की दुनिया वहां हार्नबर्ग नहीं जोशिया दीदी की मौत नहीं वहां दुख और अभाव नहीं मां की बड़ी-बड़ी आंखों से झांकती मृत्यु की काली छाया नहीं गुलाम पोलैण्ड में उन दिनों पढ़ना-लिखना कोई आसान काम नहीं था। जो कुछ सीखना होता रूसी भाषा में । जर्मन और फ्रान्सीसी भाषा सीखने की पुस्तकें भी रूसी भाषा में थीं । अपनी मातृभाषा में बच्चे साधारण लेख तक नहीं लिख सकते थे। मान्या सभी को ताज्जुब में डाल देती । उसे देखकर सभी ताज्जुब में आ जाते। बात की बात में वह सब कुछ सीख लेती जैसे जादू-मंतर जानती हो। रूसी कविताएं तो बात की बात में याद हो जातीं उसे । कभी कोई किताब लेकर बैठती तो उसे और किसी बात की सुध ही न रहती । सिर पर शोर-गुल मचता हो मचता रहे। धमा-चौकड़ी मचती हो मचती रहे मान्या जब तक पढ़ना खत्म न कर लेती अपनी जगह से न हिलती। एक बार एक विचित्र घटना घटी ।

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