राष्ट्र भाषा हिंदी : क्षेमचन्द्र सुमन हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Rashtra Bhasha Hindi : Kshemchandra Suman Hindi Book Free PDF Download

राष्ट्र भाषा हिंदी : क्षेमचन्द्र सुमन | Rashtra Bhasha Hindi : Kshemchandra Suman

राष्ट्र भाषा हिंदी : क्षेमचन्द्र सुमन | Rashtra Bhasha Hindi : Kshemchandra Suman

राष्ट्र भाषा हिंदी : क्षेमचन्द्र सुमन | Rashtra Bhasha Hindi : Kshemchandra Suman के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : राष्ट्र भाषा हिंदी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Kshemchandra Suman | Kshemchandra Suman की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 8.2 MB है | पुस्तक में कुल 226 पृष्ठ हैं |नीचे राष्ट्र भाषा हिंदी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | राष्ट्र भाषा हिंदी पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, history, india

Name of the Book is : Rashtra Bhasha Hindi | This Book is written by Kshemchandra Suman | To Read and Download More Books written by Kshemchandra Suman in Hindi, Please Click : | The size of this book is 8.2 MB | This Book has 226 Pages | The Download link of the book "Rashtra Bhasha Hindi" is given above, you can downlaod Rashtra Bhasha Hindi from the above link for free | Rashtra Bhasha Hindi is posted under following categories education, history, india |

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पुस्तक का साइज : 8.2 MB
कुल पृष्ठ : 226

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राष्ट्र-भाषा का स्वरूप
( डाक्टर राजेन्द्रप्रसाद ) देश में इन दिनों राष्ट्र-भाषा के सम्बन्ध में हिन्दी, उर्दू और हिन्दुस्तान का जो विवाद उठ खड़ा हुआ है, उसके सम्बन्ध में भी मैं अपने विचार रखता हैं। साहित्यिक जो भाषा लिखेंगे, वही भाषा आगे चल सकेगी । जो चीज़ जटिल हिन्दी अथवा जटिल उर्दू में लिखी जायगी, वह आगे चलकर मर जायगी । भाषा में जीव है, जीवन-दान करने की शक्ति है । जिस साहित्य में सत्य और सुन्दरता है, वह अवश्य जीवित रहेगा। अच्छी-से-अच्छी भाषा में भी असुन्दर और असत्य चीज़ चिरस्थायी नहीं हो सकर्ती ।।
मैं इस विवाद को बढाना नहीं चाहता । जो साहित्यिक हैं और अच्छी-से-अच्छी हिन्दी या उर्दू में अपने भावों को रख सकते हैं, वे उसी तरह रखें । भाव पर ही भाषा का जीवन निर्भर है । यदि हम सच्चा सुन्दर साहित्य-निर्माण नहीं कर सकते तो भाषा की सारी कोशिश व्यर्थ है।
सम्मेलन जो करना चाहता है, उसे सोच-समझकर वह करे । इधरउधर की चीज़ों पर ध्यान देकर अपनी और जनता की शक्तियों का हास न करे । १६३० ईस्वी में दाढी-यात्रा के समय कुछ लोगों ने महात्मा गान्धी से यह अनुरोध किया था कि आप अपने आन्दोलन के समय

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