विश्व परिचय : रविंद्रनाथ टेगोर हिंदी पुस्तक | Vishwa Parichay : Rabindranath Tagore Hindi Book

विश्व परिचय : रविंद्रनाथ टेगोर | Vishwa Parichay : Rabindranath Tagore

विश्व परिचय : रविंद्रनाथ टेगोर | Vishwa Parichay : Rabindranath Tagore

विश्व परिचय : रविंद्रनाथ टेगोर | Vishwa Parichay : Rabindranath Tagore के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : विश्व परिचय है | इस पुस्तक के लेखक हैं : ravidranath tagore | ravidranath tagore की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 5.6 MB है | पुस्तक में कुल 129 पृष्ठ हैं |नीचे विश्व परिचय का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | विश्व परिचय पुस्तक की श्रेणियां हैं : children, Knowledge, world

Name of the Book is : Vishwa Parichay | This Book is written by ravidranath tagore | To Read and Download More Books written by ravidranath tagore in Hindi, Please Click : | The size of this book is 5.6 MB | This Book has 129 Pages | The Download link of the book "Vishwa Parichay" is given above, you can downlaod Vishwa Parichay from the above link for free | Vishwa Parichay is posted under following categories children, Knowledge, world |

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पुस्तक का साइज : 5.6 MB
कुल पृष्ठ : 129

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अंधविश्वास की मूढ़ता के प्रति मेरी जो अश्रद्धा है उसने बुद्धि की उच्छलता से बहुत दूर तक मेरी रक्षा की है। फिर भी मुझे ऐसा नहीं लगता कि उक्त कारण से कवित्व के इलाके में कल्पना के महल की कोई विशेष हानि हुई है। | आज आयु के अन्तिम पर्व में मन नये प्राकृत तत्त्व-वैज्ञानिक । मायावाद से अभिभूत है। उन दिनों जो कुछ पढ़ा था, उसका सब समझ नहीं सका था, लेकिन फिर भी पड़ता ही गया। आज भी जो कुछ पढ़ता हैं उसमें का सब कुछ समझना मेरे लिए संभव नहीं है और अनेक विशेषज्ञ पंडितों के लिए भी ऐसा ही है।
जो लोग विज्ञान से चित्त का खाद्य संग्रह कर सकते हैं वे तपस्वी हैं–मिष्टान्नमितरे जनाः, मैं केवल रस पाता हैं। इसमें गर्व करने की कोई बात नहीं है, किन्तु मन प्रसन्न होकर कहता है, यथालाभ । यह पुस्तक उस यथालाभ की ही झोली है । मधुकरी वृत्ति का आश्रय करके सात पाँच घरों से इसका संग्रह किया गया है।
पाण्डित्य तो अधिक है ही नहीं, इसलिए उसे अज्ञात बना रखने के लिए विशेष उद्योग नहीं करना पड़ा। प्रयत्न किया है भाषा की ओर । विज्ञान की सम्पूर्ण शिक्षा के लिए पारिभाषिक शब्दों की जरूरत है। लेकिन पारिभाषिक शब्द चय ( चबाकर खाये जानेवाले ) पदार्थ की जाति के हैं, दाँत जमने के बाद वे पथ्य होते हैं। यह बात याद करके जहाँ तक हो
सरकार

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