ललिता : पंडित चंद्रशेखर पाठक हिंदी उपन्यास मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Lalita : Pandit Chandrashekhar Pathak Hindi Novel Free PDF Download

ललिता : पंडित चंद्रशेखर पाठक हिंदी उपन्यास | Lalita : Pandit Chandrashekhar Pathak Hindi Novel

ललिता : पंडित चंद्रशेखर पाठक हिंदी उपन्यास | Lalita : Pandit Chandrashekhar Pathak Hindi Novel

ललिता : पंडित चंद्रशेखर पाठक हिंदी उपन्यास | Lalita : Pandit Chandrashekhar Pathak Hindi Novel के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : ललिता है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Chandrashekhar pathak | Chandrashekhar pathak की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 40.77 MB है | पुस्तक में कुल 144 पृष्ठ हैं |नीचे ललिता का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | ललिता पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Lalita | This Book is written by Chandrashekhar pathak | To Read and Download More Books written by Chandrashekhar pathak in Hindi, Please Click : | The size of this book is 40.77 MB | This Book has 144 Pages | The Download link of the book "Lalita" is given above, you can downlaod Lalita from the above link for free | Lalita is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 40.77 MB
कुल पृष्ठ : 144

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लख़िता . लड़की जल लाने चली गयी । उसके चले जाने पर सब से पहली बात जो गुरुचरण को याद आशी चह सोरी के खरच की बाबत थी । इसके बाद किसी मेठे के समय सटेशन पर गाड़ी आते ही दरवाजा खुला देख कर धपनी अपनी गठरी मोटरी ले सीसरे दरजे के मुघाफिर जिस तरह पागलों की भाँति लोगों को धकका देते ठेखते गाड़ी की ओर दोड पड़ते हैं उसी तरह मार मार शबद करती हुई अनेकानेक दृशधि- नतायं उनके मसतिषक के सनथन करने छगीं । उनहें याद आया कि गत वष जब उनहोंने अपनी दूसरी कनया का विवाह किया _ था उस समय यह दुतलला मकान बनघधक पड़ा था और अब पावनेदार का छः महीने का सूद बाकी है । दुरगापूजा में अब मददीने थर की ही देर है । भभले दामाद के यहाँ सामान भेजने पड़ गे । कर शाठ वजे रात तक परिशरम करने पर भी बेंक की रोकड़ न मिली आज बारह बजने के पहले ही विला- यती डाक से जसा खच उतार कर विलायत भेजना पढ़ेगा। उसके अछावा कल बड़े साहब का फरमाव निकला है कि मेले वसतर पहन कर कोई आफित में घुलने न पायगा । जो. _ हआयगा उस पर जुरमाना किया जायगा । इघर गत सपताइ से. लापता हो रहा है। त ..... शुरूचरण अब तकिये के सहारे बैठ न सके. हाय का हुक ऊचा कर उठ बैठे । मन ही मन बोले- भगवा धोबी का पता नहीं है । घर के आधे से अधिक वखर लेकर वह...

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