चोट्टी मुण्डा और उसका तीर | Chotti Munda Aur Uska Teer

चोट्टी मुण्डा और उसका तीर : महाश्वेता देवी | Chotti Munda Aur Uska Teer : Mahashveta Devi

चोट्टी मुण्डा और उसका तीर : महाश्वेता देवी | Chotti Munda Aur Uska Teer : Mahashveta Devi के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : चोट्टी मुण्डा और उसका तीर है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Mahashveta Devi | Mahashveta Devi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 45 MB है | पुस्तक में कुल 167 पृष्ठ हैं |नीचे चोट्टी मुण्डा और उसका तीर का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | चोट्टी मुण्डा और उसका तीर पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, india

Name of the Book is : Chotti Munda Aur Uska Teer | This Book is written by Mahashveta Devi | To Read and Download More Books written by Mahashveta Devi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 45 MB | This Book has 167 Pages | The Download link of the book "Chotti Munda Aur Uska Teer" is given above, you can downlaod Chotti Munda Aur Uska Teer from the above link for free | Chotti Munda Aur Uska Teer is posted under following categories history, india |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 45 MB
कुल पृष्ठ : 167

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कहानी पुलिस के द्वारा मुरुड पहुँची और क्रमशः चोट्टि को पता लगा। चोट्टि के जीवन के साथ इस तरह एक कहानी और जुड़ गयीं। चोट्टि गुंडा के जीवन में सब-कुछ एक-एक कहानी थी।
तीन
और, हारपीटफर दस-बीस धानी मूरा पकड़ बाती हैं और थाने के मंही को परेशानी में डाल देती है। धीरे-धीरे लगता है कि सारी घटना आदी हुई कहानी है।
सव तो फिर अब गये और एक दिन शाम को जेड के हाट में बड़ो चहल-पहल हो उठी।।
धानी मंडा आ रहा है ! सिपाही ने बताया। हेड कांस्टेबल को लेकर दारोगा मुनेश्वर सिंह फौरन चल पड़े और एक गैर-मामूली दृश्य देखा। देकर इरते हुए वन्दुक निकाली।
एक हाथ में लोग और दूसरे हाथ में धनुष सिर की ऊँचाई तक उठाये एक कमजोर और पकी देह का बुद्ध में उड़ रहा था। उसके दोनों ओर आदिवासी जनता थी। उसने हाँक सगाकर कहा, "मैं धानी मुंडा है। मुझे भगा दिया था। मैं फिर आ गया है। कहाँ है थाना? मैंने कोई भी थाना नहीं देखा। मैं कोई भी रुकावट नहीं जानता। मैं आ गया है। | "ठहरो, रुको।" मुनेश्वर सिंह बने।
धानी बिना दाँत के मुह को कॅपा कर बच्चों की-सी ही में हँसा और बोला "कोई भी पुलिस मुझे रोक नहीं सकती। मैं आ गया हैं, मैं वहीं धानी मुंडा हैं।"
"धानी मुंडा ! धानी । "त डोन्नका !" *"धानी !” "तु वही घोया मंडा है।"
"अरे कनू ! साली कहाँ है ? परिवा कहाँ है?" गुढे बुशी के साथ बुहा से बातचीत करते रहे। मुनेश्वर सिह एक और मुंडा विद्रोह की संभावना देख रहे थे। धानी बड़े जलास से दलोया और धनुष प में प्रमाकर नाचते हुए बोला, ''मैं घर लौट आया हैं। नीचा होकर बैठे घुस खाउँ, घर की धूल खागा। पर की धरती में भात की सुगन्ध है। मिट्टी पाउँगा !''सचमुच धरती में मुंह रगड़ होनका रो
डा, धानी हसता था और रोता था। मुनेश्वर सिह ने धानी के सिर पर गत चला।
इस तरह देश-निकाने की आज्ञा की उपेक्षा के परिणामस्वरूप खतरनाक धानी मुंडा की मृत्यु हुई और जिनकी लिखित भाषा नहीं है, उन सारे मुटाअों ने धानी की कहानी को वीरता की कहानी के साथ मिलाकर गान व नाकर धन को अमर बना दिया।
थोट्टि मुंडा के जीवन में सब कहानियां हैं। मुंडा लोगों की भाषा की लिपि नही है। इसीलिए महत्वपूर्ण घटनाओं की कहानी बनाकर वे किवदन्ती बना देते हैं, गाना बनाकर रमे रहते हैं। वहीं उनका इतिहास भी है। धानी मुद्रा का समाचार पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार मुरुड पुलिस चौकी पर ठीक-ठीक पहुंचा। | चोदि ग्राम में कम से समाचार पवा; वीरता भगवान जब जेल में थे, इस बात को अकेले धानी मुंडा जानता था कि भगवान फिर लौटकर आयेंगे। उनके शरीर का मरण है, लेकिन उनकी आत्मा का विनाश नहीं हो सकता है। वह धरती के आबा हैं, पृथ्वी के जनक । धानी यह जानता था। धान की देह मर जाती है। धानी जेल में मेहनत करता है।
धानी तुम जेहल से निकले । पुलिस के बड़े साहब ने अखें तान कर रहा, रांची और चाईबासा में तुम्हारे लिए रोक हैं। धनुक और तीर तुम उठाओगे नही। राँची और चाईबासा में आगे नहीं जब तुम जेल से निकले। पुलिस के बड़े साहब ने यह बात कही ।। धानी, तुम हल से निकले। एक आग के तीर में तुम्हें राह दिखायी, तुम मुरुड में आये। जहाँ जहल से निकले थे।। मुरुड में तुम जिसके यहां ठहरे थे पुण्यात्मा है। मु४ि का जल-आकाश-माटी पवित्र हो गये हैं। धानी, मुरुड में तुम्हारे रहने से धानी, तुमको धरती के आबा ने पुकारा हैं। उनकी देश के मरण के दिन सैलाकार में
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