मनुस्मृति : महर्षि मनु | Manusmrati : Maharshi Manu

मनुस्मृति : महर्षि मनु  | Manusmrati : Maharshi Manu

मनुस्मृति : महर्षि मनु | Manusmrati : Maharshi Manu के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : मनुस्मृति है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Maharshi Manu | Maharshi Manu की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 20.1 MB है | पुस्तक में कुल 684 पृष्ठ हैं |नीचे मनुस्मृति का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मनुस्मृति पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, manovigyan

Name of the Book is : Manusmrati | This Book is written by Maharshi Manu | To Read and Download More Books written by Maharshi Manu in Hindi, Please Click : | The size of this book is 20.1 MB | This Book has 684 Pages | The Download link of the book "Manusmrati" is given above, you can downlaod Manusmrati from the above link for free | Manusmrati is posted under following categories dharm, hindu, manovigyan |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 20.1 MB
कुल पृष्ठ : 684

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मनुके भाषानुवादफी धर्मजिज्ञासुओका जिननी अधिक आव श्यकता है उसे जिज्ञासुद्दी जानते हैं और सम्प्रति मनु पर अनेक संकृत टीका और भाषाटीकाओके हेते हुये भी एक ऐसे अनुवाद की आवश्यकताथी जे सुगम हो अल्पमूल्यका हो, संक्षिमऔर मूलका आशय भले प्रकार स्पष्ट करनेवाला हे। जिसके अर्थों में खैचातानी और पक्षपात नहा। इसपर भी यह जाना जासके कि कितने और कौन २ से श्लेाफ लेागोने पश्चात् मिला दिये हैं। यह एक ऐसा कठिन काम है जैसे दूधमे मिले पानीका पृथक करना। इसीलिये हमने ऊपर लिये गुणोसे युक्त यह टीका छापी है और जेाश्लेक हमारी समझमें पीछेसे औरो ने मिला दिये हैं उनका ठीक उसी स्थान पर कुछ छेटे अक्षरो मे उपस्थित रक्खा है और * चिन्ह उनके ऊपर करा दिया है तथा संक्षेपमें 5नके प्रक्षित माननेके हेतु दिखलाते हुवे उसके अर्थमे कुछ हस्तक्षेप न करके अपनी सम्मतेि ( ) चिन्हके भीतर लिखनी हैं। जिसमें जिन मज्जनो के उन २ श्लेकेकेि प्रतिम माननेके हेतु पर्याम (काफी) प्रतीत हे वे अद्वा करें और जिनकी दृष्टिमे अग्राह्य हा, वे न मानें क्योकि हम निर्धान्त वा सर्वज नही हैं और न मनुष्य सर्वज्ञ हैी सकता है। इसीमे अपनी सम्मति के सर्वोपरि मानकर पुस्तकमे से वे श्लेक निकाल नहीं दिये है। जहां तक वना छानबीन बहुत की है। कितने ही ऐसे ग्लेकोंका भी पता लगता है जेा अवमलमे से निकल गये प्राचीन कालमें थे वा अभी सव पुस्तकेमेिं नही मिल पाये। हमने उनकेामी T1 केाटक मे रक्वा है। निन ने ने मेर

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21 Comments

  1. कल शाम को मैंने ये किताब एक दुकान में देखी तो खयाल आया कि Internet पर इसके बारे में जानकारी प्राप्त करूँगा, और
    इश्वर कि कृपा देखिये कि ये किताब मुझे पर ही मिल गयी और अब खरीदने कि आवश्यकता भी नही रही | और Pdf Format में होने के कारण इसको कही भी ले जाया जा सकता है | 🙂 :))

  2. आपके द्वारा किया गया यह प्रयास सराहनीय है। कृपया इसे जारी रखे एवं और पुस्तकें पीडीएफ के रुप में उपलब्ध कराने की कृपा करें। बहोत -बहोत धन्यवाद।

    चेतनआनंद सुमरा, अहमदाबाद

  3. thanl you sir
    aap ki amulya mehnat jo bhartiya aAARYA shanskriti ko jinda rakha
    nai to log bhul jate

    thanks a lot sir aap ko
    b s sisodia

  4. आपका कार्य अतिसराहनीय है,कृपया इसे जारी रखें

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