ऐतिहासिक उपन्यासों में कल्पना और सत्य | Ethasik Upanyaso Me Kalpana And Satya

ऐतिहासिक उपन्यासों में कल्पना और सत्य | Ethasik Upanyaso Me Kalpana And Satya B. M. Chintamani

ऐतिहासिक उपन्यासों में कल्पना और सत्य | Ethasik Upanyaso Me Kalpana And Satya B. M. Chintamani के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : ऐतिहासिक उपन्यासों में कल्पना और सत्य है | इस पुस्तक के लेखक हैं : B. M. Chintamani | B. M. Chintamani की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 10.89 MB है | पुस्तक में कुल 174 पृष्ठ हैं |नीचे ऐतिहासिक उपन्यासों में कल्पना और सत्य का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | ऐतिहासिक उपन्यासों में कल्पना और सत्य पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, education

Name of the Book is : Ethasik Upanyaso Me Kalpana And Satya | This Book is written by B. M. Chintamani | To Read and Download More Books written by B. M. Chintamani in Hindi, Please Click : | The size of this book is 10.89 MB | This Book has 174 Pages | The Download link of the book "Ethasik Upanyaso Me Kalpana And Satya" is given above, you can downlaod Ethasik Upanyaso Me Kalpana And Satya from the above link for free | Ethasik Upanyaso Me Kalpana And Satya is posted under following categories Stories, Novels & Plays, education |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 10.89 MB
कुल पृष्ठ : 174

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

हिन्दी के ऐतिहासिक उपन्यासों का यह विवेचन पाठकों के सामने है । हिन्दी में उपन्यास-साहित्य का आरंभ तो उन्नीसवीं सदी से ही हो। गया था, पर सभे अर्थों में उपन्यास बीसवीं सदी के आरंभ से लिखे जाने लगे हैं। इन उपन्यासों की प्रकृतिगत विविधता भी निरन्तर बढ़ती गई है । ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे गए हैं और उनकी संख्या पर्याप्त हो चुकी है। मैं जब हिंदी एम० ए० की परीक्षा दे रहा था तो उस परीक्षा के लिये एक निबन्ध लिखने की अनुमति मुझे प्राप्त हुई और यह विपय चुना गया। बाद में उसमें कुछ घटा-बढ़ा कर उस निबन्ध को अब पुस्तक का रूप दिया जा रहा है । जिस समय मैंने ऐतिहासिक उपन्यासों के संबन्ध में निबन्ध लिखना शुरू किया उस समय इस संबन्ध में कोई उल्लेख योग्य कार्य नहीं हुआ था। छिट-फुट लेख और इतिहास-ग्रन्थों में प्रासंगिक चर्चाएँ अवश्य मिलती थीं । ऐतिहासिक उपन्यासों के संबन्ध में इधर दो-एक पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं परन्तु उस समय सामग्री कम थी । वस्तुतः ऐतिहासिक उपन्यासों की आलोचना कठिन काम है। केवल साहित्यिक अर्थों की जानकारी ही इसके लिये पर्याप्त नहीं है, ऐतिहासिक ज्ञान भी उतना ही आवश्यक है ।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.