मानवता अंक : गीता प्रेस की हिंदी पुस्तक | Maanvta Ank By Geeta Press Hindi Book

मानवता अंक : गीता प्रेस की हिंदी पुस्तक | Maanvta Ank By Geeta Press Hindi Book

मानवता अंक : गीता प्रेस की हिंदी पुस्तक | Maanvta Ank By Geeta Press Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Mahatma Gandhi | Mahatma Gandhi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 52.64 MB है | पुस्तक में कुल 794 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : gita-press, history, india, inspirational, Knowledge

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पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 52.64 MB
कुल पृष्ठ : 794

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श्रीडरिं कल्याणके प्रेमी पाठकों एवं ग्राहक महाजुभादोंसे नम्र निवेद्ल १ इस चिशेषाछूमें आजके युगकी सर्वग्रधान माँग मानवता के सम्दन्धमम विभिस दष्रिय विचार प्रकंट किये गये हैं । मानवताका खरूप मानवता-धर्म मानव-धर्म मानवताकी दुगति क्यों हुई मानवता और पश्ुताके तथा मानवता और दानवताके मेद विभिन्न धर्मों ओर सम्प्रदागोंम मानवताका खरूप सानवोचित गुण मानवके छिये त्याज्य दुर्गुण मानवताकी महिमा मानयनाकि सरकषक आदश मसानवताकी उन्नतिके साधन सानवताका बिकास मानवताके पतनके कारण मानवताके उत्थानके उपाय और मानवताके उदादरण आदि अनेक मानवता-सम्बस्धी उपयोगी विषयोपर बड़े-बड़े त्यागी महात्मा संत आचाय जन-नेता विचारशीछ विद्वान अध्ययन विचारक मानवताके सेवक आदश पुरुष कवि मनीपी सहालुमावोंने अपने-अपने विचार प्रकट पियें हैं जो मानवताकों पतनके गतसे निकाठकर उत्थानके उच्च शिखरपर चढ़ानिका सफल उपाय बनलाते हैं और जिनके अनुसार आचरण करनेपर मानव यथाथ मानव वन सकता है । इसमें ७०४ प्रप्ठीरी ठोस पाव्य-सामग्रीके अतिरिक्त चहुरंगे ३९ दुरंगा १ सादे १०१ रेखाचित्र १९ कुठ १६० चित्र है । इससे यह अडझ्ू अत्यन्त उपादेय बन गया है । इस अक्लका जितना ही अधिक प्रचार होगा उननी ही _गिरी हुई मानवताके उत्थानमें सहायता मिठेगी और विशव-मानवका यथाथ मद होगा । अतग्व कल्याणके प्रति सद्धाव रखनेवाछे प्रत्येक मानवता-प्रेमी महोदयसे प्राथना द कि वे विशेष प्रयल करके इसके कम-से-कम दो-दो नये ग्राहक वनाकर इसके प्रचारमें सहयोग द॑ । २ जिन सजनोंके रुपये मनीआडरदारा आ चुके हैं उनको अड् भेजे जानेके बाद गत ग्राइकोंके नाम वी० पी ० जा सकेगी । अतः जिनको ग्राहक न रहना हो वे कुपा करके मनाहीया कार्ड तुरंत लिख दें ताकि वी० पी० मेजकर कल्याण को व्यथ जुकसान न उठाना पड़े । ३ मनीआडर-छुपनमें और बी० पी० भेजनेके छिये लिखे जानेवाछे पत्रमें स्पप्टस्पस थपना पूरा पता और श्राहक-संख्या अवश्य लिखें । ग्राइक-संख्या याद न हो तो पुराना श्राहक लिख द । नये ग्राहक बनते हों तो नया ग्राहक ढिखनेकी कुपा करें । ४ ग्राहक-संख्या या पुराना ग्राइक न छिखनेसे आपका नाम नये ग्राटकाम दज होजायगा | इससे आपकी सेवामें सानवता-अझ्झ नयी ग्राहक-संख्यासे पहुंचेगा आर पुरानी ग्राहक-सस्ान था+ पी० भी चली जायगी । ऐसा भी हो सकता है कि उधरसे आप मनीआडइरडारा रुपय भज ओर उनके यहाँ पहुँचनेसे पहले ही आपके नाम वी० पी० चढठी जाय । दाना हो स्विनिवाम आपस प्रार्थना है कि आप कृपापूर्वक वी० पी० लौटायें नहीं प्रयल करके किन्दीं सजनका नया श्रात्क बनाकर उनका नाम-पता साफ-साफ लिखें भेजनेकी कृपा कर । आपक इस कृपाइश मचवस शाला कल्याण जुकसानसे बचेगा और आप कल्याण के प्रचफ्में सहायक वनंग । कनन

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