तैत्तिरीयोपनिषद | Taittiriyopanishad

तैत्तिरीयोपनिषद : गीता प्रेस | Taittiriyopanishad : Geeta Press

तैत्तिरीयोपनिषद : गीता प्रेस | Taittiriyopanishad : Geeta Press के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : तैत्तिरीयोपनिषद है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shankaracharya | Shankaracharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 7 MB है | पुस्तक में कुल 256 पृष्ठ हैं |नीचे तैत्तिरीयोपनिषद का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | तैत्तिरीयोपनिषद पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, gita-press, hindu

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पुस्तक का साइज : 7 MB
कुल पृष्ठ : 256

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कृष्णयजुर्वेदीय तैत्तिरीयारण्यकके प्रपाठक ७, ८ और ९ का नाम तैत्तिरीयोपनिषद् है । इनमें सप्तम प्रपाठक, जिसे तैत्तिरीयोपनिषद्की शीक्षावल्ली कहते हैं, सांहिती उपनिषद् कही जाती है और..अष्टम तथा नवम प्रपाठक, जो इस उपनिपकी ब्रह्मानन्दवल्ली और भृगुवल्ली हैं, वारुणी उपनिपद् कहलाती हैं। इनके आगे जो दशम प्रपाठक है उसे । नारायणोपनिपद् कहते हैं, वह याज्ञिकी उपनिपद् है। इनमें महत्त्वकी दृष्टिसे वारुणी उपनिषद् प्रधान है; उसमें विशुद्ध ब्रह्मविद्याका ही निरूपणं किया गया है। किन्तु उसकी उपलब्धिके लिये चित्तकी एकांग्रता एवं गुरुकृपाकी आवश्यकता है । इसके लिये शीक्षावल्लीमें कई प्रकारकी उपासना तथा शिष्य एवं आचार्यसम्बन्धी शिष्टाचारका निरूपण किया गया है। अतः औपनिपद सिद्धान्तको हृदयंगम करनेके लिये पहले शीक्षावल्ल्युक्त उपासनादिका ही आश्रय लेना चाहिये । इसके आगे ब्रह्मानन्दवल्ली तथा भृगुवल्लीमें जिस ब्रह्मविद्याका निरूपण है उसके सम्प्रदायप्रवर्तक वरुण हैं; इसलिये वे दोनों वल्लियाँ वारुणी विणा अथवा वारुणी उपनिपद् कहलाती हैं।
इस उपनिपपर भगवान् शङ्कराचार्यने जो भाष्य लिखा है वह बहुत ही विचारपूर्ण और युक्तियुक्त है । उसके आरम्भमें ग्रन्थका

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