मंत्र और स्तोत्र हिंदी पुस्तक मुफ्त डाउनलोड | Mantra and Stotra Hindi Book Free Download

मंत्र और स्तोत्र : गीता प्रेस | Mantra and Stotra : Geeta Press

मंत्र और स्तोत्र : गीता प्रेस | Mantra and Stotra : Geeta Press

मंत्र और स्तोत्र : गीता प्रेस | Mantra and Stotra : Geeta Press के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : मंत्र और स्तोत्र है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 171 MB है | पुस्तक में कुल 855 पृष्ठ हैं |नीचे मंत्र और स्तोत्र का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मंत्र और स्तोत्र पुस्तक की श्रेणियां हैं : hindu, jyotish

Name of the Book is : Mantra and Stotra | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : | The size of this book is 171 MB | This Book has 855 Pages | The Download link of the book "Mantra and Stotra" is given above, you can downlaod Mantra and Stotra from the above link for free | Mantra and Stotra is posted under following categories hindu, jyotish |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 171 MB
कुल पृष्ठ : 855

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नैवात्मजो न च कुलं विपुलं बलं चा.. संदृश्यते न किल कोऽपि सहायको मे । तस्मा० ॥ २ ॥ नोपासिता मदमपास्यं मया : महान्त
स्तीथीनि चास्तिकधिया न हि सेवितानि । देवार्चनं च विधिवच्च कृतं कदापि । तमा० ।। ३ ।। दुर्वासना मम सदा परिकर्पयन्ति
चित्त, शरीरमपि राणा दहन्ति । मञ्जीवनं च परहस्तगतं सदैव । तमा० ।। ४ ।। पूर्वं कृतानि दुरितानि मया तु यानि
स्मृत्वाखिलानि हृदयं परिकल्पते में । ख्याता च ते पतितपावनता तु यस्मात् । तस्मा० ।। ५ ।। इसमेसे कोई भी मुझे अपना सहायक नहीं दीखता; अतः हे दीनबन्धो ! आप ही मैरी एकमात्र शरण हैं || २ ॥ मैंने न तो अभिमानको छोड़कर महात्माकी आराधना की, न आस्तिकबुद्धिसे तीर्थोंका सेवन किया है और न कभी विधिपूर्वक देवताओंका पूजन ही किया है। अतः हे दीनबन्धो ! अब आप ही मेरी एकमात्र शरण हैं ॥ ३ ॥ दुर्वासनाएँ मेरे चित्तको सदा खींचती रहती हैं, रोगसमूह सर्वदा शरीरको तपाते रहते हैं और जीवन तो सदैव परवश ही है। अतः हे दीनवन्ध ! आप ही मेरी एकमात्र शरण हैं || ४ || पहले मुझसे जो-जो पाप बने हैं उन सबको याद • कर-करके मेरा हृदय काँपता है; किंतु तुम्हारी पतितपावनता त प्रसिद्ध हीं है। अतः हैं दीनबन्धो ! अब आप ही मेरी एकमात्र शरण हैं ॥ ५ ॥

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3 Comments

  1. वृहद् पाराशर होराशास्त्र डालो भाईसाहब।

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